Saturday 27 March 2021

चंदृमा और जिंदगी

कोमल सुंदर और क्षींर्ण चंद्र,मानो किसी नव शिशु का जन्म ।नवीन चंद्र और नव शिशु पर सभी बलिहारी जाते हैं ।

एक शिशु की भांति चांद भी तेजी से बढ़ता है और हम उसकी सुंदरता पर बलिहारी जाते हैं जिस तरह  युवा होते बच्चे पर मां बाप बलिहारी जाते हैं।

फिर आते हैं बादल ,चांद के साथ आंख मिचौली खेलते, कभी उसके चारों ओर घूम कर उसकी सुंदरता बढ़ाते और कभी उसको अपने में छुपा लेते ।ऐसे ही एक बच्चे  को अपनी परिपक्वता पाते पाते बहुत सी कठनाइयों से गुजरना पड़ता है ।

फिर आता है पूर्ण चंद्र चारों ओर अपनी छटा बिखेरता ।उसको निहार निहार कर जी नहीं भरता।जिस तरह मां बाप अपने बच्चे की सफलता पर फूले नहीं समाते । चारों ओर उसका गुनगान करते फिरते हैं

और अंत में आती है अमावस्या। चांद को पूर्ण रूप से निगल जाती है।यही चक्र हमारी जिंदगी का भी है ।

चांद की एकादशी तो फिर आती है, परन्तु इंसान की नहींं।

हां , फिर कोई चांद किसी रूप में फिर किसी के घर निकलता है ।

जीवन चक्र तो यूं ही चलता है ।

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