Saturday 27 March 2021

An experience

 एक, साक्षात्कार ऐसा भी  ,

21st Dec. 2019

मेरी डायरी के कुछ पन्ने ।

ऐसा लगता है कल ही की बात है,कुछ दिनों से थकान सी महसूस हो रही थी ,काम करने का मन ही नहीं करता था,और उसपर अगर घर में मैहमान हों तो आप समझ सकते हैं क्या  हालत होती है।घर में कुछ न बनाकर सब बाजार से मंगा लिया,सब लोग खाने बैठे और मैं मन नहीं कर रहा कह कर बिस्तर पर लेट गई।नींद न जाने कब आ गई।जब डेढ़ दो घंटे तक मैं उठी नहीं तो (मैं कभी दिन में सोना तो दूर,लेटती भी नहीं हूं )घर में खलबली मची कि क्या हो गया ।

कोई ताकत के लिए ओआर एस पिलाने की कोशिश कर रहा है तो कोई कुछ और खिलाने की कोशिश ,कि मुझे ताकत आ जाए और उठ जाऊं।आधे होश में मुझे अचानक ऐसा लगा कि सब बाहर आ जाएगा और मैं नींद या यूं कहिए कि आधी बेहोशी में वाश बेसिन की तरफ जाने लगी और फिर उबकाई करने के बाद वही गिर गई ।घर के लोगों ने उठाने की नाकाम कोशिश की। मेरे हाथ पैर ढीले हो चुके थे। किसी तरह उठाकर मुझे पलंग पर लाकर लिटा दिया गया।और ऐम्बुलैन्स को बुलाया गया मुझे अस्पताल पहुंचाने के लिए।

ये बता दूं कि मुझे पूरा होश नहीं था हांथ पैर ढीले हो चुके थे आंख ऐसे बंद थी मानों मैं बन्द आंखों से ही देखती हूं, परन्तु इस परिस्थिति में भी मुझे बीच-बीच में कुछ हल्का एहसास हो जाता था।

अचानक मुझे लगा मुझे किसी चीज के साथ बांधा जा रहा है।फिर ऐसा एहसास हुआ कि हमें कहीं ले जाया जा रहा है दिमाग में ख्याल आया कि पता नहीं घर ठीक से बंद किया या नहीं और तुरंत मंबोला ,"सामान सौ बरस का ,पल की खबर नहीं " और मन मुस्कराने लगा । फिर मन में भाव आया कि भगवान से रक्षा की गुहार करूं तभी मन के एक कोने से ये आवाज़ आई,क्या  मैं ऐसी ही शांत मृत्यु नहीं चाहती थी,और फिर मन पूर्णतः शान्त हो गया ।मेरी ये यात्रा कितनी देर चली मालुम नहीं। कुछ शब्द कानों में सुनाई पड़े। "आंखें खोलिए, कोशिश करिए ।"

जब आंखें खोली तो मैं अस्पताल के एक बिस्तर पर लेटी हुई थी और मेरे सामने यम देवता और उनके गणों के स्थान पर डाक्टर और उनके सहयोगी खड़े मुझसे सवाल कर रहे थे ।

मेरे इष्ट देव ,

जय बाबा केदारनाथ 🙏

चंदृमा और जिंदगी

कोमल सुंदर और क्षींर्ण चंद्र,मानो किसी नव शिशु का जन्म ।नवीन चंद्र और नव शिशु पर सभी बलिहारी जाते हैं ।

एक शिशु की भांति चांद भी तेजी से बढ़ता है और हम उसकी सुंदरता पर बलिहारी जाते हैं जिस तरह  युवा होते बच्चे पर मां बाप बलिहारी जाते हैं।

फिर आते हैं बादल ,चांद के साथ आंख मिचौली खेलते, कभी उसके चारों ओर घूम कर उसकी सुंदरता बढ़ाते और कभी उसको अपने में छुपा लेते ।ऐसे ही एक बच्चे  को अपनी परिपक्वता पाते पाते बहुत सी कठनाइयों से गुजरना पड़ता है ।

फिर आता है पूर्ण चंद्र चारों ओर अपनी छटा बिखेरता ।उसको निहार निहार कर जी नहीं भरता।जिस तरह मां बाप अपने बच्चे की सफलता पर फूले नहीं समाते । चारों ओर उसका गुनगान करते फिरते हैं

और अंत में आती है अमावस्या। चांद को पूर्ण रूप से निगल जाती है।यही चक्र हमारी जिंदगी का भी है ।

चांद की एकादशी तो फिर आती है, परन्तु इंसान की नहींं।

हां , फिर कोई चांद किसी रूप में फिर किसी के घर निकलता है ।

जीवन चक्र तो यूं ही चलता है ।